बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- व्यक्तित्व के मानवतावादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
अथवा
एब्राहम मैसलो द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व की पदानुक्रमिक मॉडल को समझाइए।
उत्तर -
अभिप्रेरणा का पदानुक्रमिक मॉडल - मैसलो के सिद्धान्त का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उसका अभिप्रेरण सिद्धान्त है। इनका विश्वास था कि अधिकांश मानव व्यवहार की व्याख्या कोई- न कोई व्यक्तिगत लक्ष्य पर पहुँचने की प्रवृत्ति से निर्देशित होता है।
मैसलो का मत था कि मानव अभिप्रेरक जन्मजात होते हैं और उन्हें प्राथमिकता या शक्ति के आरोही पदानुक्रम से सुव्यवस्थित किया जा सकता है। ऐसे अभिप्रेरकों को प्राथमिकता या शक्ति के आरोही क्रम में इस प्रकार बतलाया गया है-
1. शारीरिक या दैहिक आवश्यकता
2. सुरक्षा की आवश्यकता
3. संबद्धता एवं स्नेह की आवश्यकता
4. सम्मान की आवश्यकता
5. आत्म-सिद्धि की आवश्यकता।
इनमें से प्रथम दो आवश्यकताओं अर्थात् शारीरिक या दैहिक आवश्यकता तथा सुरक्षा की आवश्यकता को निचले स्तर की आवश्यकता तथा अन्तिम तीन आवश्यकताओं अर्थात् संबद्धता एवं स्नेह की आवश्यकता को एक साथ मिलाकर उच्च स्तरीय आवश्यकता कहा है। इस पदानुक्रमिक मॉडल में जो आवश्यकता जितनी ही नीचे है, उसकी प्राथमिकता अधिक मानी गयी है।
इस मॉडल की एक प्रमुख बात यह है कि मॉडल के किसी भी स्तर की आवश्यकता को उत्पन्न होने के लिए यह आवश्यक है कि उससे नीचे वाले स्तर की आवश्यकता की संतुष्टि पूर्णतः नहीं तो कम से कम अंशतः अवश्य ही हो जाए।
पदानुक्रमिक मॉडल के पाँच स्तरों की आवश्यकतायें निम्नलिखित हैं-
1. दैहिक या शारीरिक आवश्यकता - इस श्रेणी की आवश्यकता में भोजन करने की आवश्यकता, पानी पीने की आवश्यकता, सोने की आवश्यकता, यौन की आवश्यकता तथा सीमान्त तापक्रम से बचने की आवश्यकता आदि को सम्मिलित किया गया है। जब कोई व्यक्ति जैविक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि नहीं कर पाता है तो वह अन्य उच्च स्तरीय आवश्यकताओं की संतुष्टि की बात ही नहीं सोचता है।
2. सुरक्षा की आवश्यकता - जब व्यक्ति की जैविक आवश्यकताओं की संतुष्टि हो जाती है तो वह पदानुक्रम के दूसरे स्तर की आवश्यकता अर्थात् सुरक्षा की आवश्यकता की ओर अग्रसर होता है और उसका व्यवहार इस आवश्यकता से काफी प्रभावित होने लगता है। यदि इस आवश्यकता की संतुष्टि व्यक्ति नहीं कर पाता है तो इससे उनमें एक विशेष चिन्ता जिसे मैसलो मूल चिन्ता कहा है, की उत्पत्ति होती है।
3. संबद्धता एवं स्नेह की आवश्यकता - पदानुक्रमिक मॉडल में यह तीसरे स्तर की आवश्यकता है। जब व्यक्ति की जैविक आवश्यकता तथा सुरक्षा की आवश्यकता की पूर्ति बहुत हद तक हो जाती है तो उसमें संबद्धता एवं स्नेह की आवश्यकता उत्पन्न होती है। संबद्धता एवं स्नेह की आवश्यकता का तात्पर्य अपने परिवार या समाज तथा किसी संदर्भ समूह की सदस्यता, अच्छे पड़ोसी से सम्बन्ध बनाए रखने से होता है तथा स्नेह प्राप्त करने से होता है।
4. सम्मान की आवश्यकता - सम्मान की आवश्यकता पदानुक्रमिक मॉडल में चौथे स्तर की आवश्यकता है। मैसलो ने इसमें दो प्रकार की आवश्यकताओं को सम्मिलित किया है - आत्म- सम्मान की आवश्यकता तथा दूसरों से सम्मान पाने की आवश्यकता।
आत्म-सम्मान की आवश्यकता में उत्तम क्षमता प्राप्त करने की इच्छा, आत्मविश्वास, व्यक्तिगत वर्धन, उपयुक्तता, उपलब्धि, स्वतन्त्रता आदि की भावना सम्मिलित होती है। दूसरों से सम्मान पाने की आवश्यकता में दूसरों से सम्मान, पहचान, प्रशंसा, ध्यान तथा स्वीकृति आदि पाने की इच्छा होती है।
5. आत्म-सिद्धि की आवश्यकता - मैसलों के पदानुक्रमिक मॉडल का यह सबसे अन्तिम चरण होता है जहाँ व्यक्ति तब पहुँचता है जब इसके नीचे की चारों आवश्यकताओं की पूर्ति संतोषजनक ढंग से हुई हो। आत्म-सिद्धि से तात्पर्य आत्म-उन्नति की एक ऐसी अवस्था से होता है, जहाँ व्यक्ति अपनी योग्यताओं एवं अन्तः क्षमताओं से पूर्णरूपेण अवगत होता है तथा उसके अनुरूप अपने आपको विकसित करने की इच्छा करता है। अतः आत्म-सिद्धि से तात्पर्य अपनी अन्तः क्षमताओं के अनुरूप अपने आप को विकसित करना होता है।
मैसलो ने यह स्पष्ट किया कि आत्म-सिद्धि की आवश्यकता की अवस्था पदानुक्रमिक मॉडल के अन्य आवश्यकताओं से इस अर्थ में भिन्न है कि इसके ठीक निचली अवस्था अर्थात् सम्मान की आवश्यकता की पूर्ति हो जाने पर व्यक्ति अन्य अवस्थाओं के समान स्वतः इस अवस्था में अर्थात आत्म-सिद्धि की अवस्था में नहीं आ पाता है। मैसलो द्वारा आत्म-सिद्धि व्यक्तियों पर किए गए शोधों से यह स्पष्ट हो गया है कि इस अन्तिम अवस्था में सिर्फ वहीं लोग आ पाते हैं, जिनमें सम्मान की आवश्यकता की पूर्ति हुई हो तथा साथ ही साथ जिनमें बी मूल्यों की परिपूर्णता हो। अगर व्यक्ति ऐसा है जिन्हें सम्मान की आवश्यकता की पूर्ति तो हुई है, परन्तु बी-मूल्यों की कमी है, तो वैसे लोग आत्म सिद्धि के इस अन्तिम अवस्था में नहीं आ पाते हैं।
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